THE STORY OF KHALISTAN!

हेलो दोस्तो मैं गौतम शर्मा आ गया हूं एक नए ब्लॉग के साथ जिसका शीर्षक है– THE STORY OF KHALISTAN.

उम्मीद करता हूं आप लोग स्वस्थ होंगे मस्त होंगे।
आज का यह मुद्दा हम एक कहानी की तरह जानेंगे । शुरू करने से पहले में थोड़ी संक्षिप्त जानकारी देता हूं उसके बाद विस्तार से जानते हैं।

खालिस्तान शब्द क्या है– इसका अर्थ होता है “खालसा की भूमि" और खालिस्तानी आंदोलन सिख अलगाववादियों द्वारा वर्तमान पंजाब (भारत और पाकिस्तान दोनों) में एक अलग , संप्रभु सिख राष्ट्र की लड़ाई है।
इस आंदोलन की उत्पत्ति अंग्रेजी शासन की फूट डालो और राज करो की नीति के फलस्वरूप हुई थी।

अब हम इसपर विस्तार से चर्चा करते हैं।

कहानी की शुरुआत 1823 में सुस्थापित समृद्ध सिख एम्पायर से होती है जिसके शासक महाराजा रणजीत सिंह थे।
महाराज रणजीत सिंह की मृत्यु से पहले तक अंग्रेजो ने सिख एम्पायर में कोई दखल नहीं दिया था लेकिन जैसे ही महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हुई और सिख एम्पायर कमजोर पड़ने लगा तब ब्रिटिशर्स ने मौके का फायदा उठाते हुए सिख एम्पायर को अपने कब्जे में लेलिया और हरियाणा को भी उसमे मिला लिया और महाराजा रणजीत सिंह के पुत्रों को पढ़ाई के बहाने ब्रिटेन भेज दिया ताकि उनके मार्ग में कोई ना आ सके।
परिणाम स्वरूप जब सिख एम्पायर का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं बचा तब वहां के स्थानीय महंतो नियंत्रण अपने हाथ में लिया लेकिन यह बात सिखो को पसंद नही थी इसलिए उन्होंने अंग्रेजो पर दबाव बनाने हेतु 1920 में अकाली मूवमेंट चलाया और उसके फलस्वरूप SGPC का गठन हुआ।
यहीं से SGPC सिख समुदाय का फ्रंट फेस बना जो अभी तक भी है l
सिखों को लगता था की अंग्रेजो ने सिख एम्पायर पर कब्जा तो कर लिया है लेकिन यह हमेशा के लिए नही है,जब ये यहां से जायेंगे तो तो सिख एम्पायर उन्हें वापस मिल जाएगा लेकिन सिखों के इस भरोसे को पहला झटका तब लगा जब 1929 मे मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज आंदोलन शुरू किया और उन्होंने कहा कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र बनेगा और यहां लोकतंत्रात्मक व्यवस्था होगी। इस बात से सिख लोग प्रसन्न नही थे तो उन्होंने कहा कि अंग्रेजो ने हमारे साथ धोका किया है जब अंग्रेजो ने हमसे पंजाब लिया है तो हमें ही वापस करना चाइए....इस बात पर अंग्रेजो ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पहले क्या था ये मायने नहीं रखता है अब यह महत्वपूर्ण होगा की जनसंख्या में कोन बहुमत में हैं और सिख समुदाय उस समय कुल जनसंख्या का सिर्फ 15% थे।
इस स्थिति को देखते हुए सिखों ने कहा कि हमें united India के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं है परंतु बटवारा हुआ तो हमें भी अलग राष्ट्र चाइए होगा इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया की मुस्लिमो को पाकिस्तान  मिल जायेगा हिंदुओ को हिंदुस्तान हमें क्या मिलेगा?
इन सबके बावजूद भी बटवारा होता है जिसमे 62% पंजाब और 55% जनसंख्या पाकिस्तान में चली जाती हैं , साथ ही  150 से अधिक सिख ऐतिहासिक व पवित्र स्थल पाकिस्तान में चले गए। फिर भी सिख समुदाय अपने आप को परिस्थिति के अनुरूप बना लेता है और भारत में अपने आपको अच्छे से स्थापित कर लेता हैं।

तभी 1956 में आता है state reorganization act जिसमे भारत में राज्यो को भाषा के आधार पर बाटा जाना था इसमें सिख समुदाय का कहना था की हरियाणा को बाकि पूरे पंजाब को पंजाबी बोले जाने के आधार पर अलग राज्य का गठन किया जाए लेकिन सरकार ने इस मांग को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया।
यहां से धीरे धीरे चीजे खराब होने लगती है , तब अकाली दल के लीडर तारा सिंह ने कहा कि अब बहुत ज्यादा हो रहा है हमारे साथ भेदभाव किया जा रहा है अब सिख धर्म तभी बचेगा जब सिख प्रांत होगा ...यही से शुरुआत होता है  – punjabi sooba moment
इस मोमेंट को दबाने के लिए अकालियों के बोलने पर रोक लगा दी गई , गिरफ्तारियां की गई परंतु अकालियों के अथक प्रयासों के बाद सरकार ने 1966 में संगठित  पंजाब को बांटकर तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश का गठन किया लेकिन इसके बाद कंट्रोवर्सी होती है चंडीगढ़ पर तो सरकार ने चंडीगढ़ को UT बनाके कहा कि दोनो राज्य इसे शेयर करेंगे। लेकिन सारी बातों के बाद पंजाब एक राज्य के रूप में निर्मित हो चुका था।
फिर वहां इलेक्शन होते है जिसमे अकाली दल की जीत होती है लेकिन सरकार गिर जाती है यही कई बार होता है जिसका आरोप कांग्रेस पर लगाया जाता था और उसके बाद 1972 में कांग्रेस सरकार में आ गई।
इसके परिणाम स्वरूप अकालियों ने कई बैठक की ओर एक रिपोर्ट लेकर आई जिसका नाम था –आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन 
इस रिपोर्ट में पंजाब से जुड़ी कई तरह की मांगे निहित थी लेकिन इसे हर कोई एक हथियार की तरह उपयोग में ले रहा था ,खालिस्तानी इसे एक अलग राष्ट्र की मांग के रूप में देख रहे थे तो इस संदर्भ में स्पष्टीकरण के लिए अकाली दल के लीडर भारतीय संसद के दोनो सदन को रिपोर्ट की रियल कॉपी भेजी।
आनंदपुर साहिब रिपोर्ट की वजह से अकालियों की स्तिथि वापस मजबूत हो रही थी जिससे कांग्रेस चिंतित थी और उनका विचार था की उन्हें किसी ऐसे चेहरे की जरुरत थी जो अकालियों से टक्कर ले सके। जो कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती मानी जाती है जो उन्हे आगे जाकर बहुत भारी पड़ने वाली थी।
और यही से एंट्री होती है एक ऐसे शख्स की जिसने पंजाब की पॉलिटिक्स को 360° तक बदल दिया जिसका नाम था जरनैल सिंह भिंडरावाले
जनरैल सिंह भिंडरावाले ने पंजाब में अपने उपदेश देने आरंभ किए और उसे काफी लोकप्रियता मिलने लगी तभी भिंडरावाले की मुलाकात संजय गांधी से होती है और उसे SGPC के चुनाव में अकाली दल के खिलाफ खड़ा किया जाता हैं। 
फिर होने ये लगा की भिंडरावाले को रिलीजन सपोर्ट तो प्राप्त था ही साथ ही साथ अब सरकार का भी सपोर्ट प्राप्त हो गया जिससे इसने अपनी एक्टिविट और भी फास्ट करदी।
Sikh nirankari conflict – निरंकारी सिखों ने 1978 में अपनी एक सभा आयोजित की जहां सारे निरंकारी सिख इखट्टा होने थे तब भिंडरावाले ने कहा कि वो इस सभा को आयोजित नही होने देगा और परिणाम स्वरूप हिंसा हुई जिसमे 17 लोग अपनी जान गवा देते है बाद में निरंकारी सिख लीडर की हत्या करदी जाती है इनके बावजूद भी भिंडरावाले पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता है ।
1981 में भिंडरावाले द्वारा पंजाब केसरी के एडिटर लाल जगत नारायण की हत्या कर दी जाती है तब सरकार पर दबाव बनता है भिंडरवाले की गिरफ्तारी के लिए और वह गिरफ्तार भी हो जाता है। यहीं से शुरू होती कांग्रेस और भिंडरावाले के बीच टकराव।

धर्म युद्ध मोर्चा– बढ़ते दबाव के कारण भी भिंडरावाले को जेल से रिहा कर दिया जाता है इस लोकप्रियता को देख अकाली दल उससे हाथ मिला लेता है और यहां से कांग्रेस का दांव उल्टा पड़ जाता है।
अकाली दल ने धर्म युद्ध मोर्चा की शुरुआत की जिसका उद्देश्य आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन को पास किया जाना था।
इसी समय 1982 में एशियन गेम्स दिल्ली में होने थे तो सरकार पर इसे सफलतापूर्वक पूर्ण कराने की जिम्मेदारी थी तो इसी को ध्यान में रखते हुए बस में विशेष रूप से सिखों व उनके परिवार की तलाशी ली जाने लगी यहां तक कि सिख जो आर्मी में थे उनके साथ भी गलत व्यवहार हुआ ..इस वजह से सिख समुदाय में गुस्सा व्याप्त था कि हमारे देश में हमसे भेदभाव हो रहा है तभी भिंडरावाले ने इसका बदला लेने का निश्चय किया परिणामस्वरूप प्लेन हाईजैक हुए , वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की हत्या हुई यहां तक कि पंजाब के CM पर भी जानलेवा हमला हुआ, अमृतसर से दिल्ली जा रही बस को हाईजैक कर हिंदू यात्रियों को गोली मार दी गई । पंजाब की स्तिथि बहुत खराब हो गई थी पंजाब में राष्ट्रपति शासन लग जाता है।
तब भिंडरा वाले ने सुरक्षा की दृष्टि से अपना अड्डा गोल्डन टेंपल में अकाल तख्त को बनाता है क्युकी उसे यकीन था की कोई भी नेता GOLDEN TEMPLE मे घुसने की हिम्मत नही करेगा ।

ऑपरेशन ब्लू स्टार – यह ऑपरेशन 3–6 जून 1984 तक चला । इस ऑपरेशन को शुरू करने से पहले अकालियों के माध्यम से भिंडरावाले को आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन को कुछ शर्तो सहित मानने का प्रस्ताव भिजवाया जिसे भिंडरावाले ने मानने से इंकार कर दिया । फिर लड़ाई के अलावा कोई चारा शेष नहीं रहा। इस ऑपरेशन का जिम्मा मेजर जनरल कुलदीप बरार सिंह को दिया गया को कि एक क्लीन शेव्ड सिख थे। यह ऑपरेशन इतना गुप्त था कि इसकी जानकारी तत्कालीन राष्ट्रपति को भी नही थी । 1जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया ,सभी फोन लाइन बंद कर दी गई, सभी न्यूज रिपोर्ट्स को अमृतसर के बाहर भेज दिया गया । भिंडरावाले और उसके साथी भरपूर हथियारों के साथ पूरी तैयारी से थे । 5 जून को उन्हे सरेंडर करने को कहा गया परंतु वो नही माने। फिर आर्मी ने एंटी टैंक से तीन तरफ से हमला किया ,दोनो गुटो में जबरदस्त संघर्ष चला लेकिन हार भिंडरावाले की हुई और गोल्डन टेंपल को भी भारी नुकसान हुआ।
भिड़रवाले की तो मृत्यु हो गई परंतु उसके समर्थक अभी भी थे 
फिर इस ऑपरेशन का राउंड 2 स्टार्ट हुआ जिसे। Wood rose कहा गया । इसमें आर्मी ने गांव के गांव खाली कराए ,सिख लोगो की तलाशी ली गई ,अकाली लीडरशिप को अरेस्ट कर लिया गया 


 यह पूरी घटना और ऑपरेशन के बाद गोल्डन टेंपल की तस्वीरे सामने आई और पता लगा कि दरबार साहिब पर भी गोलियां चलाई गई तो पूरी दुनिया के सिख भड़क गए उन्होंने इसे बेअदबी समझा।
इसका परिणाम यह हुआ कि 8000 सिख सैनिकों ने रिबेल कर दिया ,कई mp,mla ने इस्तीफा दे दिया और बदला लेने का निश्चय किया और कहा की जिन्होंने ये किया है सबको मार देंगे .. इस सूची में इंदिरा गांधी , राष्ट्रपति और आर्मी अधिकारियों के नाम थे ।

इंदिरा गांधी assantion- जिनका भी नाम सूची में था सबको उच्चस्तरीय सुरक्षा प्रदान की गई । इंदिरा गांधी को सबसे अधिक सुरक्षा दी गई और उन्हें ये भी सुझाव दिया गया की अपने अंगरक्षकों में से सिखों को हटा दिया जाए परंतु उन्होंने ये कहते हुए मना कर दिया की इसका गलत संदेश जाएगा और परिणाम वही हुआ जिसका डर था   31 अक्टूबर 1984 को उनके 2 अंगरक्षकों ने उनकी हत्या करदी । 

1984 anti sikh riots- इंदिरा गांधी की हत्या से हिंदू सिख टेंशन काफी बड़ गया । उनके अंतिम संस्कार के वक्त खून का बदला खून के नारे लगे । सिखों को मारा जाने लगा उनकी गाड़ियों में आग लगाई जाने लगी ,2800 से ज्यादा सिखों की हत्याएं, हुई गुरुद्वारे जला दिए गए ।

Rajiv longowal Accord – 1984 के दंगो के बाद चुनाव हुए जिसमे राजीव गांधी भारी मतों से जीते और तब उन्होंने कहा कि पंजाब की समस्या उनके लिए सर्वोपरि है , सभी अकालियों को रिहा कर दिया गया , और RLA साइन किया जिसका मुख्य बिंदु था कि 26 जनवरी 1986 को चंडीगढ़ पंजाब को वापस कर दिया जाएगा । लेकिन हरियाणा के cm राजीव गांधी से कहा कि अगर चंडीगढ़ हरियाणा से गया तो हिंदू उन्हे वोट नही देंगे और हरियाणा भी उनके हाथ से चला जायेगा जिससे राजीव गांधी उस accord से पीछे हट गए । लेकिन भिंडरावाले के समर्थको को ये accord पसंद नही था तो उन्होंने संत longowal की हत्या करदी ।
परंतु अब इनका वर्चस्व इतना नही रहा था ,सरकार ने अनेक प्रयासों से सिखों को शांत कर दिया था और भारत में ये आंदोलन कुचल दिया गया था और शांति स्थापित हो चुकी थी ।

वर्तमान स्वरूप– पंजाब में हालात लंबे समय से शांत रहे है किंतु विदेशों में सिख समुदाय द्वारा ऐसे आंदोलन देखे जाते रहे है। वहां खालिस्तान के समर्थक अभी भी मजबूत है उनके दिमाग में अभी भी 1980 की भयानक यादें मौजूद है। सिखों की कुछ नई पीढ़ियों में ऑपरेशन ब्लू स्टार और स्वर्ण मंदिर की बेअदबी को लेकर गुस्सा प्रतिध्वनित होता रहता है । कुछ भिंडरावाले को शहिद के रूप में भी देखते है। छोटा समूह अभी भी अतीत की यादों में उलझा हुआ हैं जिनके पास कोई लोकप्रिय समर्थन नहीं है ।

आगे क्या – लोगो द्वारा दुबई रिटर्न अमृतपाल सिंह को भिंडरावाले 2.0 मान रहे है। उनका कहना है कि पंजाब में आतंक का दौर फिर से लौट सकता हैं । लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में देखे तो ऐसा कुछ प्रतीत नही होता है क्योंकि तब से लेकर अब तक काफी कुछ परिवर्तित हो चुका है । अब इस आंदोलन को बहुत ही न्यून समर्थन प्राप्त है और भारत के सिख भी अब सजग हो चुके है।
कुछ कारण में दर्शाना चाहता हूं जिससे प्रतीत होता है कि अब पहले जैसा कुछ संभव नहीं है–
(1) 1980 कोल्ड वॉर का समय था और भारत का झुकाव USSR की तरफ था ।
(2) उस समय पाकिस्तान का वर्चस्व था जो अब दयनीय स्थिति में हैं
(3) सऊदी अरब नई नीति में टेरर को फंड करना बंद कर दिया है।
(4) भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार है। जो अखंड भारत की बात करती है । 
(5) सबसे महत्वपूर्ण भारतीय सिखों राष्ट्रवादी है जो इसका जरा भी समर्थन नहीं करते हैं

धन्यवाद
Writtern by Gautam sharma
Source : kuku FM , YouTube , drishti ias , Wikipedia
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टिप्पणियाँ

  1. Awesome 😎👍🤟🔥🔥
    Ab next topic chahiye 👉 ramayan uttarkand controversy ram ji ne sita ma ko vanvaas bheja ye sch h ya Congress ne Jaan bhuj ke ramayan me add mrwaya

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  2. Aapke iss blog se aaj pura matter pta chla hai..
    Thanks alot kaafi shi likha hai aapke

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