रामायण उत्तरकांड , शंबूक वध , सीता माता त्याग सच या झूट ?

हेलो दोस्तो मैं गौतम शर्मा आ गया हूं एक नए ब्लॉग के साथ , उम्मीद करता हूं आप लोग स्वस्थ होंगे मस्त होंगे।
आइए शुरू करते है।
रामायण का उत्तर काण्ड : भगवान श्री राम के चरित्र में दोष निकलने का शौक रखने वालो के लिए यह सबसे प्रिय कांड है क्योंकि इसमें उन्हे अपनी पसंद के कई प्रसंग मिल जाते है जैसे कि –
तपस्वी शंबूक का वध
माता सीता जी का त्याग 
कुछ लोगो के अनुसार रामायण महाभारत तो काल्पनिक है परंतु शंबूक वध , एकलव्य का अंगूठा काटना , ब्रह्मा जी को श्राप मिलना आदि CCTV में कैद घटनाएं हैं।
जिसका अर्थ स्पष्ट है कि इन कुछ लोगो का उद्देश्य ही श्री राम की छवि खराब करना मात्र है।
लेकिन इन तथ्यों में प्रमाणिकता कितनी है ये  जानते है जब आप आप उत्तर रामायण को ठीक से पढ़ेंगे तो आप स्पष्ट रूप से समझ जायेंगे कि इस कांड के कई सर्ग वाल्मीकि जी द्वारा लिखे हुए ही नहीं है , ऐसे कई प्रमाण आज की तारीख में प्रस्तुत हो चुके है । यह प्रमाण सिर्फ यही नहीं दर्शाते कि उत्तर काण्ड के कई सर्ग पिछले कांडो का समर्थन नहीं करते है दरअसल ध्यान पूर्वक देखा जाए तो उत्तर काण्ड में वह शब्द और व्याकरण ज्यादा देखने को मिलते है जो लगभग 2000 साल पहले बौद्ध काल के समय में प्रचलन में आए थे। 
इसके कई प्रमाण है कि उत्तर कांड वाल्मीकि रामायण का हिस्सा नहीं है–
वाल्मिकी की मूल रामायण में 24000 श्लोक , 500 सर्ग, 6 कांड है लेकिन आज की रामायण में 25000 श्लोक, 658 सर्ग  और 7 कांड है जो बाद में जोड़े गए है , जोड़े किसने यह कहना मुश्किल हैं।

वाल्मीकि रामायण में युद्ध कांड के बाद फलश्रुति गा दी गई और फल श्रुति किसी भी ग्रंथ के अंत में ही होती है ,जो कि श्लोक 107–125 तक फलश्रुति गा दी गई है। फिर इतने विस्तृत निष्कर्ष के बाद एक नई कहानी के होने का कोई तुक नहीं बनता है और अगर उत्तर कांड सच में वाल्मीकि जी द्वारा लिखित होता तो फलश्रुति उत्तर कांड के बाद क्यू नही गाई गई  । युद्ध कांड में ही क्यों कह दिया गया कि यह कथा संपन्न हुई इसका गायन करने वाले और श्रवण करने वाले सभी का कल्याण हो।
 
जब हनुमान जी पहली बार लंका जाते है उन्हे रावण के सामने ले जाया जाता है , रावण उन्हे सजा देने पर विचार कर रहा होता है कि क्या उन्हें मृत्यु दण्ड से दिया जाए तभी विभीषण और बाकी सभा सदस्य कहते है कि इससे पहले इतिहास में कभी किसी संदेशवाहक या दूत को मारा नही गया है 
लेकिन उत्तर कांड के सर्ग 13 में बताया गया है कि जब रावण ऋषियों और देवताओं पर अत्याचार कर रहा था तब कुबेर ने रावण को चेतावनी देने के लिए दूत भेजा था  जिसे रावण द्वारा मार दिया गया और राक्षसों ने उसकी उसकी लाश को अपना भोजन बनाया 
अब इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर उत्तर कांड मूल रामायण में होता तो विभीषण सुंदर कांड में दूत को कभी न मारने  वाले पंक्ति क्यू कहते।

महाभारत के वन पर्व में जब ऋषि मार्कण्डेय युधिष्ठिर को रामायण सुनाते है तब भी उत्तर कांड का कोई जिक्र नहीं होता है।
12 वी सदी में बनाया गया कंबोडिया का अंकरोवात मंदिर जिसकी दीवारों पर रामायण के सभी प्रसंग के चित्र मिले है लेकिन उसमे भी उत्तर कांड के कोई निशान मौजूद नहीं है ।
श्री राम के समय में भारत में जाति प्रथा जैसी कोई चीज नहीं थी जो उत्तर कांड के प्रसंग को अप्रमाणित टहराती है l
विकिपीडिया पर भी “shambuka " नामक लेख में लिखा है –This story was created at a later period in opposition to Brahmins.
 
लोकप्रिय रामायण सीरियल के निर्देशक रामानंद सागर ने भी सीरियल को श्री राम के राज्याभिषेक पर ही समाप्त कर दिया था परंतु तत्कालीन सरकार के द्वारा दबाव बनाए जाने पर उत्तर रामायण भी दिखाई गई जिसके बारे में उन्होंने कहा था –
उत्तर कांड के कोई प्रमाणित या ठोस आधार नहीं है ।
शंबूक वध सच या झूट ?
युद्धकांड के अंत में बताया गया है कि श्री राम ने बिना किसी बीमारी या दुख के हजारों सालों तक शासन किया । राज्य हमेशा धनी और खुशहाल था , कोई अपराध भी नही होता था ।
फिर उत्तर कांड के सर्ग 73 से 76 में एक कहानी आती है जिसमे एक ब्राह्मण का इकलौता पुत्र मर जाता है तब वह श्री राम के पास जाता है और कहता है कि उसने तो आज तक मन में भी पाप नही किया लेकिन इस राज्य में किसी शुद्र की तपस्या करने से उसका पुत्र मर गया है तभी श्री राम पुष्पक विमान से शंबूक को ढूंढते है और उसका सिर धड़ से अलग करदेते है और फिर देवता ब्राह्मण पुत्र को जीवित कर देते है ।
कैसी लगी कहानी ....काफी मनोरंजक लेकिन एक दम झूठी और मनगढ़ंत ... जरा भी प्रमाणिक नही है।
अगर देवता इसी प्रकार मरे हुए को जीवित कर देते तो उस समय देवताओं के युद्ध का तो कोई मतलब ही नहीं रह जाना चाइए था । रावण की शिकायत हरी जी के पास ले जाने का को औचित्य नहीं होना चाइए 
और रही तलवार से वध करने की तो पूरे दंडकारण्य में , लंका के पूरे युद्ध में तलवार का उपयोग नहीं किया लेकिन एक तथाकथित शुद्र को मारने के लिए तलवार लेके पहुंच गए।
लंका के पहले युद्ध में जब रावण निहत्ता हो जाता है तब राम उसे यह कहके छोड़ देते है कि हम रघुवंशी निहत्थो पर वार नही करते लेकिन श्री राम ने निहत्ते शंबूक की हत्या कर दी –लगती है ये बात कहीं से भी सत्य।
और रही बात शुद्रो के लिए तपस्या और वेदपाठ के वर्जित होने की तो यह भी सत्य नही है क्योंकि यह सत्य होता तो रामायण की ही रचना न हो पाती क्योंकि रामायण की रचना करने वाले स्वयं वाल्मीकि जी भी शुद्र थे।
अगर राजा ऐसे ही तपस्या करने वाले को ढूंढ कर मार रहे होते तो पिछले कांडो में महर्षि वाल्मिकी और शबरी जैसे लोग कैसे जीवित रह गए और इनके तपस्या और पाठ करने से पहले कोई ब्राह्मण पुत्र क्यों नहीं मरा।
श्री राम ने तो शबरी को स्वयं ही ब्रह्मा ज्ञान दिया था तो फिर किसी शुद्र के तप करने पर वो कैसे उसे मार सकते है ।
पूरी रामायण में चारो वर्णों के समान अधिकारों की बात कही गई है , केवल उत्तर कांड ही न्यारा न्यारा सा लगता है।
दुखद  बात यह है की जिन श्री राम ने केवट ,निषाद
राज आदि हरेक व्यक्ति से इतना प्रेम व्यवहार किया ,शबरी को माता कहते कहते उनके झूठे बेर खाए ,उन्ही पर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं।

माता सीता का त्याग सच या झूट ?
उत्तर कांड का एक प्रसंग यह है कि श्री राम सीता माता का त्याग कर देते है और उन्हें वन में भेज देते है ...यह भी पूर्णतया असत्य है...
जब श्री राम वन गमन कर रहे होते है तब सीता जी विलाप करती है और कहती है कि में आपके साथ आऊंगी आपके मार्ग के कंकड़ साफ करूंगी..और श्री राम के बहुत समझने पर भी नही मानती है  तब राम कहते है वन तो क्या तुम्हारे बिना तो मेरा स्वर्ग जाना भी संभव नहीं है ।
वाल्मिकी रामायण के अयोध्या कांड में एक श्लोक में श्री राम वन में सीता जी से कह रहे है कि
तुम्हारे साथ तीनों काल स्नान करके , मधुर फल मूल का आहार करके में इतना प्रसन्न हूं कि अब मुझे वापस राज्य पाने की इच्छा ही नहीं रही।
वह राम जो निर्वासित अहिल्या के चरण स्पर्श कर पाप मुक्त करते है ।
वह राम जो बाली का वध कर सुग्रीव की पत्नी रोमा को आजाद करते है । 
वही राम किसी तथा कथित धोबी के कहने पर सीता माता का त्याग कर देंगे क्या यह सत्य प्रतीत होता हैं।

वाल्मिकी रामायण के बाद सबसे प्रमाणिक माने जाने वाली गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस में उन्होंने साफ साफ कहा है कि रक्षाशो के संहार के लिए सीता हरण की योजना श्री राम और सीता जी ने मिलकर बनाई थी । श्री राम पहले से जानते थे की सीता जी का तेज इतना प्रचंड है की अगर रावण अपनी पाप बुद्धि के साथ उनके सामने आयेगा तो वही भस्म हो जाएगा इसलिए रावण के आने से पूर्व उन्होंने सीता जी को अग्नि में प्रवेश करने और अपनी जगह अपना प्रतिबिंब देने के लिए कह दिया था 
इसके बाद श्री राम द्वारा सीता की पवित्रता पर संदेह करने वाली कहानी का कोई आधार ही नही है ।
तुलसीदास जी की रामचरित मानस में तो शंबूक वध और सीता त्याग का तो कोई प्रसंग ही नही है ... अब इसके विपक्ष में कोई यह कहे कि उन्होंने जानभूज के ऐसा नही किया तो फिर में भी ये ही कहता हु की उत्तर कांड बाद मे जोड़ा गया है।
राय
उम्मीद करता हूं कि पूरा लेख पढ़के भली भांति जान गए होंगे कि उत्तर कांड की ये घटनाएं बाद में जोड़ी गई है ताकि श्री राम की छवि खराब की जा सके और किसी विशेष समूह को राम का विरोधी बनाया जा सके । अगर यूथ को भटकना हो तो उनके धर्म ग्रंथो में फेरबदल करदो या उनकी शिक्षा प्रभावित करदो , यही करके भ्रांति पैदा करदी गई है। मैं आपको बता दूं कि न तो राम दलित विरोधी थे न ही स्त्री का अनादर करने वाले थे ...अगर वे कुछ है तो वह है सर्वशक्तिशाली मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम हैं।
इसी के साथ अपने शब्दो को विराम देता हूं।
जय श्री राम 🕉️🔱
धन्यवाद
Written by Gautam sharma
Source-kuku FM , YouTube content, other blogs , wikipedia
Instagram - g_se_gautam
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टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी व्याख्या
    एक दम सही है सभी बाते
    श्री सीता राम की जय🚩
    👍🚩🚩

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  2. अत्यंत सुन्दर व्याख्या कि भाईआपने ।
    जयश्रीराम 🚩।

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