जलता मणिपुर (manipur riots)
हेलो दोस्तो मैं गौतम शर्मा आ गया हूं एक नया टॉपिक लेकर, उम्मीद करता हूं आप स्वस्थ होंगे मस्त होंगें और मैं विलंब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं।
मणिपुर जल रहा है ।
जल रही है उसके सैकडो साल पुराने सद्भाव की नीव
जल रही है अलग अलग समुदायों के बीच हसी –खुशी साथ रहने की डोर भी
और जल कर राख हो रहा है एक सपना कि पुराने गिले शिकवे मिटा कर साथ रहेंगे मैतेई, कुकी और नागा समाज के लोग
आपसी भरोसा कम हुआ है और नाउमीदी बेपनहा है।
आगे बढ़ने से पहले हम मणिपुर की भौगोलिक संरचना जानते है —
मणिपुर की भौगोलिक संरचना में ही कई तरह की समस्या निहित है। मणिपुर एक फुटबाल स्टेडियम की तरह है , इसमें इंफाल वैली बिलकुल मध्य में प्लेफील्ड है और बाकी चारो तरफ के इलाके गैलरी की तरह है ।
4 हाईवे है जिनमे से 2 प्रदेश की लाइफलाइन है जो मणिपुर को बाकी दुनिया से जोड़ते है ।
मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी 64 फीसदी से ज्यादा है ।
मणिपुर के कुल 60 विधायको में से 40 विधायक मैतेई है । वहीं दूसरी ओर 90% पहाड़ी क्षेत्र में प्रदेश की 35 फीसदी मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती है लेकिन इन जनजातियों से केवल 20 विधायक ही विधानसभा पहुंचते है ।
मैतेई समुदाय का बड़ा हिस्सा हिंदू है और बाकी मुस्लिम हैं। जिन 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है वे नागा और कुकी जनजाति के रूप में जाने जाते हैं।
अब जानते हैं विवाद उत्पन्न होने का कारण –
मणिपुर में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार ने फरवरी माह में संरक्षित इलाकों से अतिक्रमण हटाना शुरू कर दिया था , लोग सरकार के इस रुख का विरोध कर रहे थे और तनाव का माहौल था लेकिन चिंगारी को आग मिली 3 मई को आए मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले से जो मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर था।
3 मई 2023 को उत्तर पूर्वी भारत के राज्य मणिपुर में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के लोगो के बीच एक नृजातीय संघर्ष शुरू हुआ। यह मैतेई समुदाय को आरक्षण के विरोध में अखिल जनजाति विधार्थी संघ मणिपुर द्वारा बुलाए गए आदिवासी एकजुटता मार्च के दौरान चुराचंदपुर में प्रारंभ हुआ और हिंसा में परिवर्तित हो गया ।
हिंसा में अभी तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 300 से अधिक घायल हुए है , 2 आईआरएस अधिकारियों को घर से निकाल कर मार दिया गया है और 9000 से अधिक लोग विस्थापित हुए है। आर्मी ने नियंत्रण लिया है और हिंसा करने वालो को देखते ही शूट एट साइट का आदेश है।
मैतेई समुदाय का तर्क ?
मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजाति मामले के मंत्रालयों की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था । इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया । कोर्ट ने मई 2013 में एक जनजातीय मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था। इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था ।
याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में बताया कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ , उससे पहले मैतेई समुदाय को यहां जनजाति का दर्जा प्राप्त था । इनकी दलील थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय, उसके पूर्वजों की जमीन , परंपरा , संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जरूरी है ।
STDCM ( schedule tribes demand committee of manipur ) ने यह भी कहा था कि मैतेई समुदाय को बाहरियों के अतिक्रमण से बचाने के लिए संवैधानिक कवच की जरूरत है।
इनका कहना है कि मैतेई लोगों को पहाड़ों से अलग किया जा रहा है जबकि जिन्हे जनजाति का दर्जा मिला हुआ है वो सिकुड़ते इंफाल वैली में जमीन खरीद सकते हैं।
जनजातियां फैसले के विरोध में क्यों ?
मणिपुर के मौजूदा जनजाति समूहों का कहना है कि मैतेई समुदाय का जनसांख्यिकी और सियासी दबदबा है अब तक 12 में से 10 मुख्य मंत्री मैतेई समुदाय से रहे है और ये पढ़ने लिखने के साथ अन्य मामलों में भी आगे हैं ।
यहां के जनजातीय का मानना है कि अगर मैतेई समुदाय को भी जनजाति का दर्जा मिल गया तो उनके लिए नौकरियों के अवसर कम हो जायेंगे और वे पहाड़ों पर भी जमीन खरीदना शुरू कर देंगे , ऐसे में वे हाशिए पर चले जायेंगे ।
All tribe student union of manipur का कहना है कि मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की 8 वी अनुसूची में शामिल है और इनमें से कईयों को sc st obc ews का फायदा मिल रहा है
तो ऐसे में जनजाति का दर्जा दिया जाना उचित नही है ।
हिंसा को लेकर एक राय यह भी प्रकट की जा रही है – मणिपुर में सरकार समर्थकों का कहना यह है कि जनजाति समूह अपने हितों को साधने के लिए मुख्य मंत्री नोंगथोबें बीरेन को सत्ता से हटाना चाहते है क्योंकि उन्होंने ड्रग्स के खिलाफ जंग छेड़ी है ।
प्रदेश में सरकार अफीम की खेती को नष्ट कर रही है सरकार अफीम की खेती करनें से रोक रही है और कहा जा रहा है कि इसकी मार म्यांमार के अवैध प्रवासियों पर भी पड़ रही है।
यह कहानी तो यहां पुरी होती है लेकिन इस सारे फसाद की जड़ क्या है वो है एक कुव्यवस्था जिसका नाम अच्छे शब्दों में कहूं तो आरक्षण और दूसरे शब्दों में मुफ्तखोरी।
आरक्षण जैसी व्यवस्था युवा वर्ग को आसक्त , कम मेहनती , और अकुशल बनाती है । आरक्षण जैसी व्यवस्था जिसे शुरू में सीमित समय के लिए कुछ विशेष समुदाय की स्थिति को सुधार के लिए अपनाई गई थी आज वो नेताओ के लिए वोट बैंक और जनता के लिए लत बन चुकी है । ऐसी व्यवस्थाएं समान को खोखला करती है लोगो में आपसी द्वेष उत्त्पन्न करती है अलगाव को जन्म देती है और करती भी रहेंगी।
इस व्यवस्था में सख्त और उचित सुधार की आवश्यकता है यह उन्हीं के लिए संरक्षित किया जाना चाइए जिन्हे इसकी सच में आवश्यकता है उन्हे नही जो सक्षम होने के बाद भी इसका लाभ उठा रहे है ..किसी एक वर्ग के हितों के उत्थान के लिए अन्य वर्ग के हितों का दमन उचित नही है ।
शब्द तो काफी हैं परंतु कुछ पंक्तियों के साथ अपने शब्दों को विराम दूंगा –
मेरा देश जल रहा है
किस आग में
शिक्षा मुफ्त, दवा मुफ्त , खाना मुफ्त , बिजली पानी भी मुफ्त
सब मुफ्त पाने की आग में ,
क्यों देश को बांटे मजहब में हम
एक तरफ धर्म निरपेक्षता , दूसरी तरफ आरक्षण
बंट गया देश जातियों में
हां जल रहा देश आरक्षण की आग में,
निजी सरकारी में फर्क रहेगा
पेपर लीक होते रहेंगे
विद्यार्थी निराश होते रहेंगे
बेरोजगारी भी बढ़ती रहेगी , सरकारी नौकरी पाने की आग में
जल रहा मेरा देश आरक्षण की आग में,
निजी सरकारी का भेद खतम हो
आरक्षण की मांग न हो
मुफ्तखोरी छोड़ मेहनतकश युवा हो
फिर क्यों जलेगा मेरा देश किसी आग में ♥️✨
धन्यवाद !
गौतम शर्मा
पढ़के अच्छा लगे तो अपना प्रतिक्रिया जरूर दे।
चलो तुम और हम तो प्रयास करे इसे बुझाने का..
जवाब देंहटाएंप्रयासरत है।
हटाएंShandar explain by you brother
जवाब देंहटाएंKeep growing 💗
शुक्रिया ♥️✨
हटाएं😁too good vroo
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